पति की मौत के बाद कौन बनेगा वारिस? दूसरी पत्नी की दावेदारी पर बड़ा खुलासा – Wife Property Rights

By Prerna Gupta

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Wife property rights

Wife Property Rights : भारत में पारिवारिक विवादों की सबसे बड़ी वजहों में से एक है – संपत्ति को लेकर झगड़ा। खासतौर पर जब बात हो पति की मौत के बाद दूसरी पत्नी के अधिकार की, तो मामला और पेचीदा हो जाता है। कई बार अदालतों में ये सवाल उठता है – क्या दूसरी पत्नी को संपत्ति में हिस्सा मिलना चाहिए? चलिए जानते हैं कानून क्या कहता है।

पहली बीवी को क्या मिलता है?

कानून साफ कहता है – अगर पति की वसीयत नहीं है, तो पहली पत्नी को पति की संपत्ति में बराबरी का हक मिलता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत, पति की मौत के बाद उसकी संपत्ति उसकी पत्नी, बच्चों और माता-पिता में बांटी जाती है। यानी पहली पत्नी पूरी तरह से कानूनी रूप से सुरक्षित है।

दूसरी पत्नी का क्या स्टेटस है?

दूसरी पत्नी का हक सीधा इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी शादी कानूनी है या नहीं। अगर पहली पत्नी ज़िंदा है और तलाक नहीं हुआ है, तो दूसरी शादी अवैध मानी जाती है। और ऐसे में दूसरी पत्नी को पति की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होता।

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कब मान्य होती है दूसरी शादी?

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अनुसार, दूसरी शादी तभी मान्य है जब पहली शादी का तलाक हो चुका हो या पहली पत्नी की मृत्यु हो गई हो। अगर ऐसा नहीं है, तो दूसरी शादी अवैध मानी जाएगी और पत्नी का दर्जा नहीं मिलेगा।

स्वअर्जित और पैतृक संपत्ति में फर्क

अगर पति की संपत्ति उसने खुद कमाई है (स्वअर्जित संपत्ति), तो वह उसे किसी को भी दे सकता है – चाहे पहली पत्नी हो, दूसरी या कोई और। लेकिन अगर बात पैतृक संपत्ति की है, यानी जो विरासत में मिली है, तो दूसरी पत्नी को हिस्सा तभी मिलेगा जब उसका विवाह वैध हो।

बच्चों के अधिकार

एक अहम बात – भले ही दूसरी शादी अवैध हो, उस रिश्ते से पैदा हुए बच्चों को पिता की संपत्ति में पूरा हक मिलता है। सुप्रीम कोर्ट भी इस पर साफ कह चुका है कि बच्चों को उनके माता-पिता के वैवाहिक दर्जे की सजा नहीं दी जा सकती।

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क्या कहती हैं अदालतें?

कोर्ट का रुख भी साफ है – अवैध शादी में पत्नी को कानूनी अधिकार नहीं मिलते। लेकिन अगर पति ने अपनी वसीयत में दूसरी पत्नी के नाम कुछ संपत्ति छोड़ी है, तो वह उस पर दावा कर सकती है। अदालतें ऐसे मामलों में कानून और सबूतों के आधार पर फैसला करती हैं।

धर्म के हिसाब से फर्क

हिंदू, ईसाई और पारसी धर्म में एक ही शादी मान्य होती है। लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ में एक पुरुष चार शादियाँ कर सकता है, और हर पत्नी को संपत्ति में हिस्सा मिलता है।

तो कुल मिलाकर, दूसरी पत्नी का हक तभी बनता है जब शादी कानूनी हो। बच्चों को उनका हक जरूर मिलता है, लेकिन पत्नी को नहीं – जब तक शादी वैध न हो। हर मामला अलग होता है, इसलिए किसी विवाद की स्थिति में वकील की सलाह ज़रूर लें।

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