चेक बाउंस पर अब कब तक नहीं होगी जेल, सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला, जानिए नई गाइडलाइंस Cheque Bounce

By Prerna Gupta

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Cheque Bounce

Cheque Bounce – आजकल चेक से भुगतान करना बहुत आम हो गया है। चाहे व्यापार हो या कोई व्यक्तिगत लेनदेन, चेक को सुरक्षित तरीका माना जाता है। लेकिन कई बार चेक बाउंस होने की समस्या सामने आती है, जिससे कानूनी परेशानियां भी हो सकती हैं। खास बात यह है कि चेक बाउंस होना एक अपराध माना जाता है, जिसके तहत जुर्माना और जेल की सजा भी हो सकती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि चेक बाउंस के मामले में तुरंत जेल नहीं होती? इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने भी साफ निर्देश दिए हैं। आइए विस्तार से समझते हैं।

चेक बाउंस होने के कारण

सबसे बड़ा कारण होता है बैंक खाते में पैसे की कमी। जब आप किसी को चेक देते हैं तो आपके खाते में उतनी राशि होनी चाहिए जितनी चेक में लिखी हो या उससे ज्यादा। इसके अलावा चेक पर गलत या अधूरा सिग्नेचर होना, चेक की तारीख खत्म होना, बैंक खाता बंद होना या चेक में कोई कटिंग-ओवरराइटिंग होना भी चेक बाउंस की वजह बन सकता है। इन कारणों से चेक बाउंस हो जाता है और इसके बाद कानूनी कार्रवाई हो सकती है।

निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के तहत क्या है नियम

चेक बाउंस के मामले निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881 के तहत आते हैं, खासकर धारा 138 के तहत। इस कानून के अनुसार अगर कोई व्यक्ति चेक जारी करता है और उसके खाते में पर्याप्त पैसा नहीं है, तो उसे कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ता है। इसमें दो साल तक जेल, जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। लेकिन ये सजा तुरंत नहीं होती।

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चेक बाउंस पर कानूनी प्रक्रिया कैसे होती है?

जब चेक बाउंस होता है तो सबसे पहले चेक लेने वाले को चेक देने वाले को नोटिस भेजना होता है। ये नोटिस 30 दिनों के अंदर भेजना जरूरी है। नोटिस में कहा जाता है कि चेक की राशि 15 दिन के अंदर जमा करनी होगी। अगर 15 दिन के अंदर भुगतान नहीं होता है तो चेक लेने वाला 30 दिनों के अंदर कोर्ट में केस कर सकता है।

कोर्ट में क्या होता है?

कोर्ट में केस होने के बाद आरोपी को समन भेजा जाता है। उसे कोर्ट में आकर अपना पक्ष रखना होता है। इस दौरान आरोपी चेक की राशि जमा करके मामला निपटा सकता है। अगर वह कोर्ट में नहीं आता या पैसे नहीं देता तो कोर्ट उसके खिलाफ वारंट जारी कर सकती है। केस के फैसले में दोषी पाया गया तो जेल या जुर्माना हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है?

सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस के मामलों में आरोपी को पहली बार जेल भेजने से मना किया है। कोर्ट का मानना है कि आरोपी को अपना पक्ष रखने का मौका मिलना चाहिए। अगर दोष साबित होता है तब भी आरोपी को अपील का अधिकार है और अपील के दौरान जमानत पर रह सकता है। यह एक बड़ा राहत भरा कदम है।

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अंतरिम मुआवजे का क्या प्रावधान है?

2019 में कानून में बदलाव हुआ, जिसके तहत आरोपी पहली पेशी पर 20 प्रतिशत अंतरिम मुआवजा देता है। बाद में इस प्रावधान को बदलकर अब आरोपी अपनी अपील के दौरान भी यह मुआवजा दे सकता है। अगर बाद में आरोपी की अपील मंजूर हो जाती है तो मुआवजा वापस भी मिल सकता है।

आरोपी को अपील का अधिकार

चेक बाउंस के मामले में दोषी पाए जाने पर आरोपी को 30 दिन के अंदर अपील करने का अधिकार होता है। साथ ही वह सजा स्थगित करने के लिए भी अपील कर सकता है और जमानत पर बाहर रह सकता है। इससे आरोपी को न्यायिक प्रक्रिया में पूरा मौका मिलता है।

चेक बाउंस पर जेल कब होती है?

जेल की सजा आमतौर पर तभी मिलती है जब सारे कानूनी रास्ते अपनाने के बाद भी आरोपी पैसे नहीं देता और दोषी साबित होता है। अधिकतम दो साल तक जेल हो सकती है, लेकिन ज्यादातर मामलों में छह महीने से एक साल के बीच होती है। अगर आरोपी चेक की राशि और मुआवजा चुका देता है तो सजा कम या खत्म भी हो सकती है।

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मुआवजे का प्रावधान क्या है?

कानून के तहत पीड़ित को मुआवजा भी मिल सकता है। कोर्ट आरोपी को चेक की रकम से दोगुना तक मुआवजा देने का आदेश दे सकती है। यह मुआवजा पीड़ित की आर्थिक और मानसिक परेशानी को देखते हुए तय किया जाता है।

चेक बाउंस से बचने के तरीके

चेक बाउंस से बचने के लिए कुछ बातें ध्यान में रखें। सबसे पहले चेक जारी करने से पहले खाते में पर्याप्त पैसा होना जरूरी है। चेक पर साफ और सही सिग्नेचर करें, कटिंग या ओवरराइटिंग न करें। चेक की वैधता को भी ध्यान में रखें। अगर कभी पैसों की समस्या हो तो सामने वाले से बात करके पेमेंट का दूसरा तरीका निकालें। इससे आप कानूनी परेशानी से बच सकते हैं।

चेक बाउंस के मामले में अब जल्दबाजी में जेल नहीं होती। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि आरोपी को कानूनी मौका दिया जाना चाहिए। इसलिए चेक का इस्तेमाल करते वक्त सावधानी बरतें और हर संभव प्रयास करें कि आपका चेक बाउंस न हो। अगर आपके साथ ऐसा कोई मामला है तो बेहतर होगा कि आप किसी कानूनी विशेषज्ञ से सलाह लें।

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